पू; शंकराचार्य जी पुरी,गोवर्धन पीठ - श्री स्‍वामी निरंजन देव जी तीर्थ


        औदीच्‍य समाज को गौरवान्वित करने ेवालें में पू; शंकराचार्य,पुरी,गोवर्धन पीठ  के श्री स्‍वामी निरंजन देव जी तीर्थ  का नाम उल्‍लेखनीय है। आप सनस 1964 से 1992 तक जगन्‍नाथपुरी  के शंकराचार्य के पीठ पर आसीन रहे। आपको सन्‍यास की दीक्षा , व्‍दारका पीठाधीश्‍वर  स्‍वामी अभिनव सच्चिदानन्‍द र्ती‍थ  महाराज व्‍दारा प्रदान की गयी थी।
        आपका जन्‍म ब्‍यावर राजस्‍थान निवासी श्री गणेशलाल जी व्दिवेदी के यहां आश्विन क्रष्‍ण 14 संवत 1967 को हुआ । प्रारम्भिक संस्‍क्रत की शिक्षा  के पश्‍चात सम्‍पूर्णानन्‍द संस्‍क्रत विश्‍वविध्‍यालय  से व्‍याकरण शास्‍त्री,व्‍याकरणाचार्य एवं पौष्‍टाचार्य  की उपाधि प्राप्‍त की । इसके साथ ही काशी में रहते हुए  आपने व्‍याकरण मीमांसा, वेदान्‍त दर्शन  तथा न्‍यायशास्‍त्र का अध्‍ययन किया।
       अध्‍ययन के पश्‍चात पं; चन्‍द्रशेखर व्दिवेदी नारायण संस्‍क्रत कालेज  पेटलाद  में प्राचार्य पद पर  नियुक्‍त हुए। आप करपात्रीजी श्री हरिहरानंद जी के विशेष अनुयायायी  रहे तथा उनके व्‍दारा स्‍थापित अ;भा;राम राज्‍य परिषद के मंत्री पद पर भी कार्य किया  तथा करपात्रीजी के निर्देश पर ऋषिकुल ब्रहमचर्याश्रम हरिव्‍दार में दो वर्ष तक प्राचार्य रहे। इस अवधि में अनेकों यज्ञों का अनुष्‍ठान सम्‍पन्‍न किया । राजस्‍थान लोक सेवा आयोंग से चयन के फलस्‍वरूप  1955 से 1964 तक महाराजा संस्‍क्रत कालेज  जयपुर के प्राचार्य पद पर भी आसीन रहे । सन 1966 ,1967 के गोरक्षा आन्‍दोलन में आपने लगातार 72 दिन का अनशन दिल्‍ली जेल में किया । हिन्‍दू कोड बिल तथा गौ हत्‍या  विरोध आन्‍दोलन का भी आपने सफल नेत्रत्‍व किया। आपने शास्‍त्र सम्‍मत सभी परम्‍पराओं का कटटर समर्थन किया। आप धर्म आधारित व्‍यवस्‍था के प्रबल समर्थक  थे । हिन्‍दू धर्म के प्रचार प्रसार  एवं संवर्ध्‍दन  में अपना पूरा जीवन लगा दिया। जगत गुरू शंकराचार्य की महान परंपरा को गौरवान्वित करने वाले वे प्रथम औदीच्‍य रहे हें।
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