औदीच्य - अपने संस्कृति प्रकाश दीप को ज्योतिर्मान रखे।


दीपावली के अवसर पर विशेष लेख
 औदीच्य - अपने संस्कृति प्रकाश दीप को ज्योतिर्मान रखे।
श्री प्रकाश दुबे
अध्यक्ष
अखिल भारतीय औदिच्य महासभा म. प्र. इकाई उज्जैन॥
ज्ञान, बुद्धि, वेभव, एश्वर्य,मृद्धि, संपन्नता, आनन्द, उल्लास, के इस मंगलमय अक्षुण भारतीय आध्यात्मिक धार्मिक, ओर संस्कृतिक परंपरा के इस पावन पर्व पर समस्त औदीच्य बंधुओं का हार्दिक अभिनंदन। यह अवसर हे, विश्व कल्याण की भावना से मानव मात्र के जीवन से देहिक देविक भतिक आपदा ओर संकट को दूर कर उनमें खुशियाँ बाटने ओर उनके जीवन को आल्हाद, उन्माद, से सरोवार कर आंतरिक प्रफुल्लता के दीप प्रज्वलित करने का।

सभी वर्णो मे ब्राह्मण श्रेष्ठ हे। ब्राह्मणौ की उत्पत्ति के बारे में कहा गया हे की,
ब्रह्माsसृज तपस्तस्था विप्रान्मिगय: गुप्तये,
उदीचि स्थापयास,ते सुशु न तु मानुषा:।
अर्थात ब्रह्मा ने भारी तपस्या कर वेद धर्म की रक्षा हेतु ब्राह्मणो को उत्पन्न कर उन्हे उत्तर दिशा में स्थापित किया, इनकी मनुष्यो में नहीं देवताओं में गणना की जाती हे"
इस प्रकार कुलीन श्रेष्ठ ब्राह्मण होने के कारण हमारे दायित्व भी विश्व कल्याण की द्रष्टि से असीमित हें। वेदिक धर्म ओर सनातन संस्कृती की रक्षा का दायित्व हम पर हे। यह भी एक एतिहासिक तथ्य हे की 11 वीं सदी में, सिद्धपुर पाटन के शासक सोलंकी मूलराज द्वारा रुद्र महालया में मूर्ति की स्थापना एवं प्राण प्रतिष्टा हेतु उत्तर दिशा से ही श्रेष्ठतम ब्राह्मणो को आमंत्रित किया गया था। ये ही लगभग 1100 ब्राम्हण उदीच्य कहलाए। ओर वहीं के निवासी हुए। "श्री स्थल प्रकाश" में इनके संबंध में कहा गया हे,-
"वसंती तत्रेय विप्रा स्ते साक्षात मुनय: परं भुजन्ती वांछीतान्योगन् स्तुत्या वै माधव प्रभु"। अर्थात जो ब्राम्हण सिद्धपुर मे निवास कर रहे हें, वे साक्षात महामुनि हें, वे 'माधव प्रभु' तथा प्रभु गोविंद माधव की स्तुति पूजन कर मनोवांछित भोग प्राप्त करते हें, वे वंश ओर परिवार बृद्धी के साथ पूरे गुजरात में शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करते रहे, किन्तु एतिहासिक घटना चक्रो, आतताईयों के आक्रमण, दुर्भिक्ष आदि कारणो से अनेक औदीच्य परिवारो का पलायन हुआ ओर वे मालवा, राजस्थान, पंजाब, बनारस, तक  अनेक क्षेत्रो में विस्थापित होने को विवश हुए। विखराव अवश्य हुआ किन्तु अपने उच्च आदर्श युक्त संस्कार की जीवन शेली उनमें विद्धयमान रही स्थानीय परिवेश से प्रभावित होते हुए भी अपनी संस्कृती की अंतर्धारा उनमें निरंतर प्रवाहित हे।
मित्रो ब्रांहणों में आज भी हम सर्वोपरि हें, हमरा गोरव शाली अतीत हे, ज्ञान विज्ञान पाण्डित्य विद्वता से परिपूर्ण वैभव मय वर्तमान हे। वेद, ज्ञान, यज्ञ, हवन, कर्मकाण्ड, का प्रवल शास्त्रीय पक्ष हे। सोलह संस्कारों से सज्जित जीवन आदर्श हे, पूजन, अर्चन, उपासना, युक्त ईश्वर आराधना का विधान हे। त्याग तपस्या, साधना, सरलता, सादगी, की जीवन शेली हे, जन सेवा, परोपकार, दानशीलता, के उच्च जीवन मूल्य हें। त्योहार उत्सव, मांगलिक कार्यक्रमों के आनंद मय आयोजन हें। संगठित होकर हम अपने गोरव शाली ऋषि महर्षि तुल्य पूर्वजों से आशीर्वाद लेकर वेदिक सनातन संस्कृति की रक्षा में निरंतर संलग्न रहकर जाति की समृधि के साथ वेश्विक स्नेह प्रेम, के दीप सतत प्रज्वलित करते रहें।
जय गोविंद माधव ॥       

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